एटिकेट का विकास क्विक गाइड(त्वरित मार्गदर्शिका)



एटिकेट्स का विकास - परिचय

एटिकेट्स का विकास - परिचय

एटिकेट्स ऐसे निर्देशों का एक सेट होता है जिसे सही तरह से पालन किया जाये तो आप जिससे बात करते हैं उसके मन में आपके प्रति एक अच्छी छवि बनती है। इसके साथ-साथ एटिकेट्स एक व्यक्ति को पेशेवर तरीके से व्यवहार करना और स्थिति के अनुरूप स्वयं को उचित ढंग से पेश करना भी सिखाता है।

“एटिकेट” शब्द फ्रेंच के एस्टिकेट शब्द से आया जिसका अर्थ “टिकट या लेबल” होता था। उस जमाने में कोर्ट में एक चलन था कि अपेक्षित व्यवहारों को कार्डों पर मुद्रित (प्रिंट) किया जाता था ताकि अदालतों में उचित अनुशासन बना रहे। बाद में अमीर तथा उच्च वर्ग के लोगों ने इसे अपने रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।

जहाँ पहले आमंत्रण पत्र में सिर्फ तिथि और समय लिखा रहता था वहाँ लोगों ने कई और सूचनाएं देनी शुरू कर दी जैसे-भवन का नक्शा, कहां गाड़ी खड़ी करनी है आदि। दूसरे लोगों ने भी इस परिपाटी का पालन करना शुरू कर दिया और जल्द ही सार्वजनिक भवन में अपने प्रवेश द्वार पर उन आचार व्यवहारों को लगाने लगे जिनकी वे अपने आगंतुकों (आनेवालों) से अनुपालना की अपेक्षा करते हैं।

बाद में "वावेल करप्शन" की वजह से शब्द एस्टीकेट - एटीकेट, शब्द के रूप में परिवर्तित हो गया। चूंकि इस शब्द का उपयोग अब कार्ड और कुछ मानदंडों तक सीमित नहीं था जो तब केवल उच्च वर्ग के लोगों के घरों में पाया जाता बल्कि अब यह जीवन का हिस्सा बन चुका था। इस तरह धीरे-धीरे एटिकेट शब्द का अर्थ अपेक्षित व्यवहार हो गया।

'एटिकेट' बनाम 'मैनर्स' बनाम 'कर्टसी' (शिष्टाचार बनाम व्यवहार बनाम शालीनता)

बातचीत करते समय इन शब्दों का इस्तेमाल फेर -बदलकर किया जाता है इसलिये कई बार लोग इन तीनों शब्दों-“एटिकेट”, “मैनर्स” और “कर्टसी” के इस्तेमाल में गलती करते हैं। आइए जानें कि इनका क्या अर्थ है −

कर्टसी (शालीनता)

कर्टसी (शालीनता) से तात्पर्य विनम्र रहने तथा किसी खास समय में एक व्यक्ति द्वारा ऐसे व्यवहार किये जाने से है जिसे वह उचित समझता है। जैसे पहले किसी महिला यात्री को बैठने के लिये अपनी सीट छोड़ देने को शालीनता मानी जाती है। हालांकि समय के साथ इन रवैयों में बदलाव आते हैं। अपने सहकर्मी को अंदर आने के लिए ऑटोमैटिक लिफ्ट के दरवाज़े को खुला रखना- आज के समय में शालीनता का एक उदाहरण हो सकता है।

एटिकेट (शिष्टाचार)

यह आचार संहिता है जिसकी लोगों से विभिन्न सामाजिक हलकों में अनुपालना की अपेक्षा की जाती है । यह निर्देशों का ऐसा संग्रह है जो भले ही लिखित रूप में मौजूद न हो लेकिन इसे किसी लिखित नियम से कम महत्व नहीं दिया जाता। एटिकेट यह बताता है कि किसी समाज में एक व्यक्ति का व्यवहार किस प्रकार का होना चाहिये ताकि वह वहाँ के सभी लोगों के मन में एक सकारात्मक छाप छोड़ सके।

मैनर्स (व्यवहार)

मैनर एक न्यूट्रल टर्म होता है जिसका मतलब सिर्फ “कार्य” होता है। यही कारण है कि हम इसके साथ “गुड” या “बैड” (“अच्छा” या “बुरा”) शब्द इस्तेमाल करते हैं। इसलिए आप जब किसी के अभद्र व्यवहार से परेशान होकर उससे यह कहते हैं कि - “तुम्हारे पास मैनर्स नहीं हैं क्या!” और वो आपसे “हाँ” कहता है तो हो सकता है कि वह वाकई सही बोल रहा है।

मैनर्स तो सभी के पास होता है लेकिन यह उसके परवरिश, परिवेश और शिक्षा पर निर्भर करता है कि वो अच्छा या बुरा व्यवहार करता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि एटिकेट्स हमें यह बताता है कि किस तरह व्यवहार करना चाहिये और आख़िरकार हम जिस प्रकार व्यवहार करते हैं - ये मैनर्स होते हैं।

'एटिकेट' का विकास

'एटिकेट' का विकास

भले ही “एटिकेट” शब्द हाल ही में आया है, लेकिन चार्ल्स डार्विन जैसे विकासवादी ने इसे न केवल शिष्टता का सार्वभौमिक गुण माना बल्कि इसके पीछे छिपे के आशय को भी पहचाना। जिस तरह लोगों के चेहरे दृश्य या विचार या शर्म, घृणा, क्रोध, दुःख आदि के प्रति अनुक्रिया करते हैं उसमें उन्होंने एक तरह की सार्वभौमिकता को देखा। ये अभिव्यक्तियां प्रौढ़ता या मानव विकास के किसी भी विशेष स्तर पर नहीं दिखी।

साथ ही, उन्होंने पाया कि बच्चे भी तनाव, दर्द और आनन्द में  उसी तरह से अनुक्रिया करते हैं।

  • वे सभी नवजात शिशु जिनका उन्होंने परीक्षण किया, उनमें से किसी ने भी  खुशी व्यक्त करने के लिए अपनी भौहें नहीं सिकोड़ी न ही उदासी व्यक्त करने के लिए मुस्कराहट का सहारा लिया है।

  • सभी शिशुओं ने एक ही प्रकार की अभिव्यक्ति प्रकट की, मानो इसे उनके डीएनए में टेम्पलेट से पढ़ रहे हो।

इस अवलोकन का प्रयोग करते हुए, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ऐसी अनुक्रियाएँ दूसरों को देखकर नहीं सीखी जाती बल्कि ये तो जन्मजात होती हैं। इसके अलावा, यह निष्कर्ष निकाला गया कि ये अनुक्रियाएं मानव व्यवहार के विकास की परिणाम थी।

एक विख्यात विकासवादी हेलेना कर्टिस, का कहना है कि 'एटिकेट' केवल एक सामाजिक जनादेश ही नहीं था, बल्कि यह जीवन जीने की एक कला थी। पक्षियों को देखकर वह यह पता लगा सकती थी कि जो लोग विनम्र थे और स्वच्छता का ध्यान रखते थे जीने और प्रजनन करने की सर्वोच्च संभावना थी।

इसी तरह, स्टीवन नेबुर्ग ने अपनी पुस्तक, “हैण्डबुक ऑफ सोशल साइकोलॉजी” में लिखा है कि जानवरों और पक्षियों में उन्होंने यह पाया कि वो भी अपने बच्चों को अपने जीवन के से प्राप्त अनुभवों को सिखाते हैं क्योंकि वो भी चाहते हैं कि नई पीढ़ी शिष्टाचार को बनाये रखे। शिष्टाचार के माध्यम से वे अपनी संतानों को कुछ ऐसे नियम सिखा पाते हैं जिससे उन्हें एक समूह में रहने में मदद मिलती है जहाँ कुछ सदस्य शारीरिक तौर पर उनसे ज्यादा मजबूत होते हैं। यही शिष्टाचार के विकास की शुरुआत थी जहां जानवरों और पक्षियों ने अपने पूर्वजों से प्राप्त शिष्टाचार का पालन करना शुरू कर दिया था और दूसरों के समान व्यवहार को ध्यान में रखकर यह पता लगाया था कि वे किस पर भरोसा कर सकते हैं और किस पर नहीं।

विकास

अंग्रेजी में कहावत है कि “birds of the same feather flock together” जिसका मतलब “चोर का साथी गिरहकट” या “एक ही थैली के चट्टे बट्टे” होता है। इस कहावत में केवल पंख का ही नहीं बल्कि शिष्टाचार का भी जिक्र है। कबूतरों के एक झुण्ड में कई अन्य छोटे-छोटे झुण्ड भी होंगे जो अन्य पक्षियों से सीखे जाने वाले शिष्टाचार पर निर्भर रहते हैं। ऐसा करना उनके लिए लाभप्रद होगा क्योंकि एक ही तरह की मानसिकता वाले पक्षी हमले के समय अपने प्राणों की रक्षा के लिए एक झुण्ड में तबदील हो जाते हैं और अपनी रक्षा के लिए एक झुण्ड में ही रहकर लड़ाई करते हैं।

ऐसे ही लक्षण उन लोगों में भी देखे जा सकते हैं जो घर के नियमों को लेकर बहुत अडिग होते हैं और जहाँ बच्चों को शाम में अंधेरा होने के बाद घर से बाहर रहने की इजाजत नहीं होती है। वे इस व्यवहार को इस तर्क पर उचित ठहरा सकते हैं कि “इज्जतदार परिवार के बच्चों को यह शोभा नहीं देता।” इस प्रकार वे इसे एटिकेट से जोड़ देते हैं और इससे लाभ यह होता है कि उन्हें रात में घर से बाहर घूमने के सम्भावित परिणामों (जैसे- डकैती, हमला आदि) के बारे में चर्चा नहीं करनी पड़ती।

इस प्रकार शिष्टाचार को मानदंडों और विशिष्ट आचरण के समूह के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो अवलोकन और अनुभव से प्राप्त किया गया है जो सुविधा और बेहतर जीवन शैली प्राप्त करने की इच्छा से निर्धारित किए गए थे।

स्वच्छता व स्वास्थ्य(हाइजीन) से जुड़ी एटिकेट्स का विकास

स्वच्छता व स्वास्थ्य(हाइजीन) से जुड़ी एटिकेट्स का विकास

विशेषज्ञों का कहना है कि संस्कृति के उदय के साथ-साथ सामाजिक शिष्टाचार का विकास भी तीन मुख्य श्रेणियों से गुजरा है। ये प्रत्येक श्रेणी वहाँ लोगों के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन निर्वाह करने के तौर-तरीकों पर आधारित विशिष्ट विषयों पर केंद्रित थीं।

ये तीन श्रेणियाँ हैं −

  • स्वच्छता
  • शालीनता और
  • सांस्कृतिक मानदंड

'हाइजीन' सफाई (sanitation) और स्वच्छता(cleanliness) के इर्द-गिर्द केंद्रित थी, जो लोगों की रोगों से रक्षा करती थी। 'कर्टसी' अस्तित्व और सामाजिक स्वीकार्यता पर आधारित थी, वहीं समान विचार वाले व्यक्तियों की टोली में सुरक्षित महसूस करने के लिए सांस्कृतिक मानदंड स्थापित किए गए थे।

इसे सहवर्तिता(कन्कामिटेन्स) कहा गया जिसका अर्थ कर्म के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आना है। चूंकि तीनों क्षेत्र एक व्यक्ति के जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं  इससे यह समझा जा सकता है कि एक व्यक्ति का जीवन एटिकेट से कितना घिरा हुआ है।

स्वच्छता से जुड़े एटिकेट्स का विकास दूसरों को ऐसे एटिकेट्स(शिष्टाचार) सिखाने के मकसद से हुआ जिससे वे बीमारी तथा उसके संक्रमण बच सकें। इन शिष्टाचार को बचपन में सिखाया जाता है क्योंकि बच्चों में बीमारियों के फैलने का खतरा अधिक होता है और यदि बच्चे कम उम्र में ही सफाई की आदतें सीख लें तो उनमें ये अच्छी आदतें बनी रहेंगी।

स्वच्छता से जुड़े एटिकेट्स

जब 12 साल की उम्र के बच्चों से यह पूछा गया कि वे सूप पीने से पहले  नैपकिन को क्यों रखते हैं, खाँसते समय रूमाल का इस्तेमाल क्यों करते हैं, जबकि अन्य छींकने और खांसते समय ऐसा नहीं करते तो वे सिर्फ इतना कहेंगे कि हमें यह माँ ने सिखाया है। जब उनसे यह पूछा जाये कि उनकी माताओं ने उन्हें यह क्यों सिखाया तो वे शायद कुछ नहीं बोल पायेंगे। जब ये बच्चे युवावस्था में पहुंचते हैं तब उन्हें इसके पीछे का कारण समझ में आता है कि उनके माता-पिता ने उन्हें कुछ विशिष्ट शिष्टाचार को पालन करना क्यों सिखाया था। हालांकि, उस समय तक शिष्टाचार उन्हें सुरक्षित रख सकता है।

इस तरह के शिष्टाचार की सफलता के लिए माता-पिता द्वारा बताये जानेवाले अनुशासन और अनुकूल माहौल अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मकसद यह होता है कि जब तक बालक वयस्क हों तब तक निरंतर अभ्यास से ये शिष्टाचार उनके स्वभाव के हिस्सा बन जायें।

अलग-अलग परिवार के बच्चों में अलग-अलग एटिकेट्स देखने को मिलती हैं जैसे डाइनिंग टेबल पर ज्यादा शोर नहीं करना, खाना खाते समय बात नहीं करना, या कभी किसी से अपना रूमाल नहीं शेयर करना, वहीं स्कूलों में हाइजीन से संबंधित एटिकेट्स का एक जैसे दिशा-निर्देशों का एक सेट होता है।

यहाँ हाइजीन से संबंधित कुछ बुनियादी एटिकेट्स की सूची दी गई है −

  • श्वसन स्राव (नाक से आनेवाले पानी) को पोंछने के लिए टिशू पेपर का इस्तेमाल करना।

  • उचित स्थान पर टिशू पेपर फेंकना।

  • खाँसते व छींकते वक्त मुँह और नाक को ढकना।

  • श्वसन स्राव के साथ आकस्मिक संपर्क के बाद हाथों को कीटाणुरहित करना।

  • खाँसते व छींकते वक्त दूसरों से कम से कम 3 फीट की दूरी बनाए रखना।

एटिकेट का विकास - कर्टसी से जुड़े एटिकेट्स

कर्टसी से जुड़े एटिकेट्स

शालीनता(कर्टसी) सामाजिक जीवन की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक है। 'कर्टसी' (शालीनता) शब्द स्वयं कोर्टीअस (शालीन) या कोर्ट्ली (शिष्ट या दरबारी) शब्द से आया है, जो उस समय के दरबार में होने वाली कार्यवाही की ओर एक सीधा संकेत करता है। शालीन(कोर्टीअस) होने का अर्थ दूसरों के साथ बातचीत करते समय विनम्र रहने और दूसरों का खयाल रखने से है।

कर्टसी से जुड़े एटिकेट्स ऐसे एटिकेट्स का एक समूह होता है जहाँ लोग दूसरों की मदद करने के लिये अपने हित को दाव लगा देते है। ये शिष्टाचार(एटिकेट्स) लोगों के मन में सकारात्मक प्रभाव बनाने और सामाजिक हलकों में विश्वास पैदा करने में मदद करते हैं। एक शालीन व्यक्ति अपने और दूसरों के हितों का नियमन करके किसी समाज में रहने का अधिकतम लाभ उठा सकता है। उदाहरण के लिए, जैसा कि जब आप कतार में खड़े हैं तो किसी विकलांग को अपने से पहले किसी सेवा का लाभ लेने की अनुमति देना या अपने सहकर्मी के लिए लिफ्ट खोले रखना आदि कुछ ऐसी चीजें हैं जो छोटी तो लग सकती है लेकिन लोगों के मन में एक स्थायी छाप छोड़ती हैं।

शालीनता-सहवर्ती शिष्टाचार ही केवल एक ऐसा व्यवहार है जहाँ स्वच्छता-सहवर्ती शिष्टाचार कम महत्वपूर्ण हो जाता है। कोई ऐसा व्यक्ति जो बुरी तरह से जख्मी है और अपने घाव पर बाँधने के कपड़े का टुकड़ा तलाश रहा है तो आप उस व्यक्ति को अपना रूमाल (यदि रूमाल साफ हो तो) दे सकते हैं, या फिर आपके किसी मित्र को ठंड लग रही है तो आप अपना जैकेट निकालकर उसे दे सकते हैं और अपने कुछ समय तक यूँही काम चला सकते हैं।

शालीनता से जुड़े शिष्टाचार का यदि पालन नहीं किया जाता है तो सामाजिक अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है। जॉब के बारे में सब-कुछ जानने और शानदार प्रदर्शन देने के बाद भी कर्मचारी अक्सर प्रबंधकीय पदों पर पदोन्नत नहीं किये जाने की शिकायत करते हैं। हालांकि, ऐसे अधिकांश मामलों की वजह सामाजिक शिष्टाचार की कमी होती है।

कोरीयन एयर फ्लाइट 801 एयर-क्रैश - केस स्टडी

90 के दशक में 'कोरियन एयर' की गिनती दुनिया की सबसे असुरक्षित एयरलाइनों में होती थी। कोरियन एयर की पहचान एक डरावनी एयरलाईन के रूप में थी। लगभग 20 दुर्घटनाओं के बाद यह सबसे ज्यादा दुर्घटनाओं वाली एयरलाइन्स के चार्ट में शीर्ष स्थान पर थी। जब यह स्पष्ट हो गया कि एयरलाइंस ने अपने 10 साल के कामकाज में इतनी बदनामी कमा ली है जितनी कि अन्य कम्पनियाँ कई दशकों में कमाती हैं तो इसके प्रबंधन ने कर्मचारियों के कामकाज को समझने के लिए विशेषज्ञों को नियुक्त करने का फैसला लिया।

ऐसा नहीं है कि प्रबंधन का रवैया कठोर था या वे विमान दुर्घटनाओं को लेकर चिंतित नहीं थे। उनसे गलती यह हो रही थी कि वो वही कर रहे जो अक्सर किसी दुर्घटना के बाद कंपनियाँ करती थीं। आमतौर पर कंपनियाँ मशीनरी, इंजन और अप्रशिक्षित विमान चालक आदि क्षेत्रों का अध्ययन करती थीं। संक्षेप में कहें तो वे उन चीजों की छानबीन कर रही थी जिन मुद्दों पर मीडिया  सवाल उठाती है जैसे कि पुराने विमान, अयोग्य स्टाफ, कम्यूनिकेशन गैप, आदि। हालांकि, ध्यान देने योग्य बात यह है कि उनकी समस्या तकनीकी नहीं बल्कि पदक्रम पर आधारित एक अत्यंत कठोर और सख्त शिष्टाचार थी।

एक जाँच के मुताबिक बहुत से लोगों को पहले यह विश्वास करना बहुत बेतुका और बेहद मुश्किल लगता था कि दुर्घटना शिष्टाचार की एक सख्त श्रेणीबद्ध संरचना का परिणाम थी। जिसमें कोरियाई लोगों से आशा की जाती थी कि वे अपने बुजुर्गों से इतना सम्मानपूर्वक व्यवहार करेंगे कि दुनिया के अन्य भाग के लोग तो इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।

कोरिया के लोग अपने परिवार तथा अन्य लोगों से बातचीत करते समय वरिष्ठता, संबंध, रैंक, क्रम और अधिकार के आधार पर सख्त शिष्टाचार का पालन करते हैं। कोरिया के लोग छः अलग-अलग तरीके से बातचीत करते हैं और ये सभी तरीके सामाजिक संरचना जैसे वरिष्ठता और संबंध पर आधारित होते हैं और इसका पालन एक ही परिवार के लोग आपस में बातचीत करते समय भी करते हैं।

मामले का अध्ययन

उदाहरण के तौर पर एक कोरियाई अपने पिता, दादा तथा अपने बेटे से बिल्कुल अलग-अलग अंदाज में बात करता है। वह अपने बड़े और छोटे बेटे से अलग-अलग तरीके से बात करेगा। हालांकि इस तरह के ढाँचे को इस मकसद से तैयार किया गया था कि परिवार के सदस्य एक-दूसरे का सम्मान करें लेकिन विमानन के इतिहास में सबसे खराब दुर्घटनाओं में से एक कोरियाई एयर की फ्लाइट 801 की 1997 वाली दुर्घटना के पीछे भी इसी का हाथ था।

कोरियाई एयर फ्लाइट 801 का एयरक्रैश

6 अगस्त 1997 का वो दुर्भाग्यपूर्ण सुबह जब यूएसए के गुआम रनवे से पाँच किलो मीटर दूर नीमित्ज़ हिल से कोरियाई एयर फ्लाइट 801 दुर्घटनाग्रस्त हो गई। उस समय इसमें 253 यात्री सवार थे जिसमें से 223 लोगों की मौत हो गई। इनमें से ज्यादातर सवारी सैलानी और हनीमून पर जाने वाले लोग थे।

दुर्घटना की जाँच से यह पता चला कि दुर्घटना कैप्टन की गलती की वजह से हई थी जिसने ऊँचाई बतानेवाले ऐसे यंत्र का रीडिंग सही मान लिया जो ठीक तरह से काम नहीं कर रहा था। हालांकि, दिलचस्प बात यह थी कि फर्स्ट ऑफिसर का ऊंचाई सूचक ठीक से काम कर रहा था फिर भी वह कप्तान को यह नहीं बता पाया कि गलत आंकलन के कारण उड़ान पर खतरा मंडरा रहा था।

कोरियाई एयर फ्लाइट 801 का एयरक्रैश

चौंकाने वाले खुलासों में से, एक-उड़ान के वॉइस रिकॉर्डर से यह पता चला कि अधिकारी को जब इसका अहसास हुआ कि जहाज में कुछ खराबी आयी है तो, वह इतना हिम्मत नहीं जुटा पाया कि वो पदानुक्रम वाले शिष्टाचार को तोड़कर कैप्टन के गलत फैसले पर सवाल पूछे।

इसके अलावा कोरियन एयर की भर्ती करनेवाली पॉलिसी के हिसाब से वो सिर्फ ऐसे पायलट्स की भर्ती करते थे जो पहले वायुसेना में काम किये होते थे। इस वजह से वर्गीकृत संरचना को और मजबूती मिली और उनमें बातचीत करने के सख्त तरीके होते थे। और यही कारण होता था कि कैप्टन के साथ काम करने वाले कर्मचारियों के बीच इतना खौफ बना रहता था कि अपनी बात को सहजता से नहीं रख पाते थे। जिस दिन प्लेन क्रैश हुआ था उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था-जब फर्स्ट ऑफिसर को पता चला कि विमान बहुत तेजी से नीचे उतर रहा था तो भी वह चुप रहना मुनासिब समझा।

बातचीत के एटिकेट को दोष दिया जाना चाहिये?

बहुत से लोग, खास तौर पर पश्चिम के लोग इस बात के बिल्कुल खिलाफ थे कि किसी को एटिकेट्स के तहत बताये गये समाजिक नियमों को पूर्ण रूप से पालन करना चाहिये। यदि किसी की हालत बहुत ज्यादा खराब हो और वो जीवन-मृत्यु की लड़ाई लड़ रहा तो भी एटिकेट्स का सख़्ती से पालन किये जाने के खिलाफ थे। यह एकलौती ऐसी घटना है जो इस घटना के पीछे सच्चाई को बयाँ कर रही थी।

फ्लाइट का कैप्टन एक 42 वर्षीय व्यक्ति था जिसके पास लगभग 9000 घंटे की उड़ान का अनुभव था। 40 साल का फर्स्ट ऑफिसर कैप्टन से सिर्फ दो साल छोटा था। दिलचस्प बात यह है कि 57 साल के फ्लाइट इंजीनियर के पास कैप्टन और फर्स्ट अधिकारी के कुल अनुभव से भी अधिक उड़ान का अनुभव था। लेकिन वे अधिकारी से बात करने और सम्मान देने से संबंधित शिष्टाचार की डोर से इतने बंधे हुये थे कि उनमें से कोई भी अपने अधिकारी की गलती को खुलेआम नहीं बता पाया।

इस ऑडिट के परिणामानुसार कोरियन एयर ने अपने मानव संसाधन नियमों और प्रशिक्षण व्यवहार में काफी बदलाव किया। फ्लाइट ऑफिसर्स अब सेना से नहीं लिए जाते थे और ट्रेनिंग कार्यक्रम को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि अलग-अलग रैंक के ऑफिसर आपसी सम्मान को बरकरार रखते हुए खुलकर बात कर सकें।

बातचीत के सख्त एटिकेट

कोरियन एयर की नीतियों में निम्नलिखित बदलाव किये गए। इस तरह के कई वर्कशीट्स तैयार की गई और सभी स्टाफ को दी गई ताकि यह जाना जा सके कि वे एटिकेट (शिष्टाचार) से क्या समझते हैं −

  • यदि छोटे रैंक का कोई कर्मचारी अपना हाथ हिलाते हुये आपसे यह पूछे कि "आप कैसे हैं"?

    • आप उसे शिष्टाचार का ध्यान रखने के लिए कहते हैं।

    • आप जवाब होगा-"धन्यवाद! मैं ठीक हूँ। "

    • उसे अनदेखा करके चलते रहेंगे

    • अधिकारी वाली बॉडी लेंग्वेज बनाये रखेंगे और थोड़ा सा सिर हिलाकर अभिवादन करेंगे।

  • बात करते समय किसी वरिष्ठ सहकर्मी के करीब खड़ा होना उचित है

    • हाँ

    • कभी नहीं

    • अगर वह करीबी दोस्त है।

    • नहीं, अगर वह सहकर्मी किसी दूसरे विभाग है तो नहीं

  • आपका कोई सहकर्मी एक मित्र के साथ आपके रूम में आता है और आप से उसका परिचय करवाना चाहता है

    • उसे अपने मित्र को आप से तुरंत मिलवाना चाहिए।

    • उसे तुरंत अपने मित्र का परिचय आपसे करवाना चाहिए।

    • उसे पहले मुझसे बात करनी चाहिए और फिर अपने मित्र का परिचय मुझसे करवाना चाहिए।

    • उसे अपने मित्र को मुझसे मिलवाने से पहले मुझे सूचित करना चाहिए।

  • आपने किसी से अपॉइन्ट्मेन्ट लिया है; फिर भी आप प्रतीक्षा कर रहे हैं

    • दरवाजा खोलकर  "इक्स्क्यूज़ मी" बोलेंगे।

    • दरवाज़े पर खड़े हो जायेंगे ताकि आप जिस व्यक्ति से मिलने आए है वह आपको देख सके।

    • कुछ देर और इंतजार करेंगे और फिर एक पर्ची पर छोटा सा नोट लिखकर वहाँ से वापिस आ जायेंगे

    • आत्मविश्वास के साथ अंदर जायेंगे, अपना परिचय देंगे और अपने अपॉइन्ट्मेन्ट के बारे में बतायेंगे।

  • किसी को शुक्रिया अदा करने का बेहतर तरीका यह होगा कि

    • आप उसे उपहार के साथ एक छोटा सा नोट भेजें।

    • यूँही ऑफिस चले जायें और उससे लंच या कॉफी पर आमंत्रित करें।

    • उसके घर पर फूल भेजें

    • उसे कॉल करें।

  • किसी मिटींग मे महिला से हाथ मिलाने से पहले उसके हाथ बढ़ाने की प्रतीक्षा करें

    • हमेशा

    • कभी नहीं

    • यदि वह आपसे छोटे पद पर है तो ऐसा नहीं करना चाहिये

    • यदि वह आप ही के दर्जे की सहकर्मी है तो ऐसा नहीं करना चाहिये।

  • मौसम, राजनीति और यातायात पर चर्चा करते हुए चुप्पी तोड़ना बेहतर होता है

    • हमेशा

    • कभी नहीं

    • यदि वह व्यक्ति आपसे छोटे पद पर है तभी ऐसा नहीं करना चाहिये

    • यदि वह व्यक्ति आप ही के दर्जे का सहकर्मी है तो ऐसा नहीं करना चाहिये।

  • किसी व्यावसायिक इकाई को ईमेल भेजते समय आपको

    • इतनी औपचारिक भाषा का प्रयोग करन चाहिए जितनी की आप कागज पर लिखते वक्त करते हैं।

    • सहज और औपचारिक भाषा शैली का प्रयोग करें जो बिल्कुल पत्र-व्यवहार जैसी हो।

    • यथासंभव औपचारिक रहें और ईमेल को तथ्यों और बिंदुओं से अनुरूप रखें।

    • शीघ्र प्रतिक्रिया पाने के लिये कम और 'टू द प्वाइंट'(प्रासंगिक) लिखें।

  • ऑफिस आवर्स में व्यक्तिगम बातचीत के लिये फोन का इस्तेमाल करना उचित है

    • कभी नहीं

    • हमेशा

    • मिटींग में नहीं

    • जब लोग आस-पास हो तब नहीं

  • यदि आपका कोई कलीग (सहकर्मी) आपसे कोई अफवाह शेयर करता है तो

    • आप यह अफवाह किसी और से शेयर करेंगे

    • आप स्वयं सच्चाई का पता लगाने का प्रयास करेंगे

    • उस अफवाह के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये अपने सहकर्मियों बात करेंगे

    • सूचना को अपने तक ही रखेंगे और उस कर्मचारी को फटकार लगाएंगे

परिणामों के विश्लेषण से एक आश्चर्यजनक बात निकलकर आई-अधिकांश कर्मचारियों ने पूछे गए सवालों के जवाब 'हाँ' या 'ना' में दिया था। ज्यादातर पायलटों ने या तो पूर्णरूप से सकारात्मक वाला उत्तर "हमेशा" या पूर्णरूप से नकारात्मक "कभी नहीं" वाला उत्तर चुना था।

कुछ ने चरमसीमाओं के बीच संतुलन बनाए रखना चुना। हालांकि, इनमें से इन-फ्लाइट स्टाफ बहुत कम थे। इसे ध्यान में रखते हुए एयरलाइनों में कई बदलाव किये गए। इस तरह व्यापक स्तर पर उठाये गये कदम का परिणाम ये हुआ कि कोरियन एयर की वर्ष 2007 की इकलौती घटना के सिवाय कोई दुर्घटना नहीं घटी। वर्ष 2007 वाली घटना भी कोई दुर्घटना नहीं थी- इसमें हुआ ये था कि एक हवाई जहाज़ अपेक्षित रनवे के बजाय टैक्सीवे पर लैंड की थी पर इसमें भी यान का कोई यात्री हताहत नहीं हुआ।

सांस्कृतिक एटिकेट्स का विकास

सांस्कृतिक एटिकेट्स का विकास

एक ऐसे समाज में जहाँ भिन्न भिन्न प्रकार की सांस्कृतिक पहचान हो वहाँ यदि कोई व्यक्ति अपनी एक अलग ही पहचान बनाने की इच्छा रखना चाहता है तो यह सांस्कृतिक एटिकेट्स(सांस्कृतिक शिष्टाचार) या सांस्कृतिक-सहवर्ती शिष्टाचार का परिणाम है। यह उन लोगों की पहचान करने और उनसे जुड़ने के लिये मददगार साबित होती है जो उन सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करते हैं।

सांस्कृतिक शिष्टाचार(सांस्कृतिक एटिकेट्स) ऐसे व्यवहारों का एक समूह है जो लोग अपने परिवार के सदस्यों को देखकर, उनकी बात मानकर और बार-बार प्रयास करके सीखते हैं। कुछ दिनों के बाद वे इन कार्यों से परिचित हो जाते हैं और उन्हें पूरी तरह अपनी प्रकृति में आत्मसात कर लेते हैं। इस स्तर पर दूसरे संस्कृति के लोगों से बातचीत करने पर उनको ये पता चल जाता है कि वे दूसरे संस्कृति के हैं।

सांस्कृतिक एटिकेट्स का विकास

सांस्कृतिक शिष्टाचार का पालन नहीं करना अकसर आइडेन्टिटी क्राइसिस (पहचान-संकट) और एलीयनेशन(अलगाव) का सबब बन जाता है। जो लोग पूरी तरह से अपनी मूल संस्कृति को अस्वीकार कर देते हैं और एक नई संस्कृति-जहाँ वे रहते हैं उसका अनुसरण करने लगते हैं तो बहुधा उनमें उस संस्कृति के लोगों के बीच रहने की इच्छा प्रबल होने लगती है।

सम्मान का सांस्कृतिक शिष्टाचार

अमेरिका में व्यक्तियों के एक समूह पर ऑब्ज़र्वेशन पर आधारित तीन अलग-अलग प्रयोगों में यह पता चला कि दक्षिणी राज्यों में सम्मान के लिये कठोरता से एटिकेट्स का पालन किया जाता हैं जो उनके लिए अनोखा है, और यह उनके इतिहास और पूर्वजों का देन है।

सामाजिक प्रयोगों में लोगों को बिना बताए उनके मूल राज्यों पर आधारित उनका विवरण देकर उनको प्रतिभागी बनाया गया। इन औचक लोगों से वैज्ञानिकों ने खुद को आहारशास्त्री, पोषण विशेषज्ञ और डॉक्टरों की एक टीम बताया। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि इस प्रयोग में हिस्सा लेने वालों का एक मशीन के जरिये स्वास्थ्य जाँच की जायेगी, जहाँ कुछ किलोमीटर चलने के बाद ये मशीनें उनके दिल की धड़कन और सांस की गति का अध्ययन करेंगी।

जब सभी इस सरल प्रतीत होने वाली एक्सरसाइज के लिए तैयार हो गये तो फिर चलने के लिये एक रास्ता तय किया गया। हालांकि, वास्तविक खेल एक असावधान व्यक्ति को रास्ते से विपरीत दिशा से आने वाले व्यक्तियों से टकराना था। जब प्रतिभागी फुटपाथ पर चल रहा होता था उसी समय एक व्यक्ति उनसे जानबूझ कर टकराता था और अपशब्दों का इस्तेमाल करके उनके साथ दुर्व्यवहार करता था।

इसमें यह देखा गया कि-उत्तरवासी इस अप्रिय अनुभव से अपेक्षाकृत बेपरवाह रहे और इस पूरी घटना को एक बुरा अनुभव मान लिया और इसे दिमाग से निकालकर खुशी-खुशी आगे बढ़ गये। लेकिन दक्षिणवासियों ने इस घटना को दिल पे लिया और घुड़की, गाली-गलौज, प्रतिशोध या हाथा-पाई  में संलिप्त हो गए।

सम्मान का सांस्कृतिक शिष्टाचार

मशीनों की रीडिंग की जाँच करने पर पता चला कि उनके कॉर्टिसोन और टेस्टोस्टेरोन के स्तरों में एक काफी वृद्धि हुई थी जो यह दर्शाता है कि वे परेशान व आक्रामक हो गये थे। जब उनसे पूछा गया कि वे इतने उत्तेजित क्यों हो गए थे तो उनमें से सभी ने जो जवाब दिया उनमें एक संकेत स्पष्ट था कि यह उनकी मर्दानगी पर प्रश्न चिन्ह था। अमेरीका में सालों से ऐसी कई घटनाएं घटती आ रही हैं जहाँ काफी मामूली बात पर भी हिंसक अपराध हुए हैं।

सम्मान संहिता (कोड ऑफ ऑनर)

अपशब्द और गाली-गलौज आदि घटनाओं के चलते हत्या जैसे अपराध हो जाया करते हैं जो कई लोगों को तो तुच्छ लग सकते हैं, लेकिन जो उनमें संलिप्त होते हैं उनको नहीं। मानव वैज्ञानिकों ने इसे सम्मान संहिता(कोड ऑफ ऑनर) की संज्ञा दी।

सामाजिक वैज्ञानिकों ने सम्मान संहिता का अनुपालन कर रहे दक्षिणी राज्यों के लोगों के लिए कई बाते बतायीं और कई लोग इस बात को मानते हैं कि इसका इतिहास बहुत पुराना है। सालों पहले ब्रिटेन के बाहरी क्षेत्र वाले लोग दक्षिण में आकर बसे थे तभी से वे लोग कबिलाई शासन और अराजकता के शिकार होते रहे हैं।

कानून लागू करने वाली सरकार के अभाव में उन्होंने अपने बच्चों को अपने सम्मान को बरकरार रखने और इसकी सुरक्षा करने के लिए आक्रामक व रक्षात्मक रवैया अपनाने के लिए तैयार रहने को कहा। सम्मान कोई भाव नहीं, बल्कि एक पौरुष बल और योद्धा-संंबंधित गुण का प्रतीक मात्र है। अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये इसे जरूरी समझा जाता था। यदि किसी व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति के तौर पर देखा जाता है कि उसे धमकाया या मारा जा सकता है तो उसके लिए यह कहा जायेगा कि वह अपने सम्मान की रक्षा लंबे समय तक नहीं कर पाएगा। यदि बच्चों को कुछ अप्रिय कहा जाता है और जब उनके सम्मान की रक्षा के लिए उनमें पौरुष भाव जोड़ा जाता है तो वे लोगों के प्रति अपना बर्बर क्रोध प्रकट करते हैं। यह दण्डात्मक न्याय की अवधारणा  सिखाने के कारण हुआ था जिसका कई दशकों तक पालन किया गया था।

1940 के दशक तक अगर दोषी यह दावा करता था कि उसने किसी की हत्या इसलिए की क्योंकि उस व्यक्ति ने उसका अपमान किया था तो भी दक्षिणी अदालत में हत्या के लिए सजा देना लगभग असंभव था। यहां तक कि दक्षिणी पुरुष, जो आम तौर पर हिंसा का समर्थन नहीं करते थे या हिंसक गतिविधियों में भाग नहीं लेते थे, वे भी यह मानते थे कि अपने सम्मान, अधिकार, संपत्ति और परिवार का बचाव करने के लिए हिंसा न्यायोचित थी।

आइबीएम की सांस्कृतिक शिष्टाचार वाली शालीनता की खोज: केस स्टडी

एक प्रख्यात डच सामाजिक मनोवैज्ञानिक गीर्ट हाफ़स्टेड ने कर्मचारी सर्वेक्षणों से एकत्र आंकड़ों का इस्तेमाल किया था जो कि एक निर्धारित समय के लिए आईबीएम द्वारा 50 से अधिक देशों में आयोजित किया गया था और उनमें विभिन्न संस्कृति-सहवर्ती शिष्टाचारों का स्पष्ट और निश्चित प्रभाव बहुसांस्कृतिक संस्थानों में मिला ।

आईबीएम दुनियाभर में 116,000 से अधिक कर्मचारियों को रोजगार देती है। जब इन सभी कर्मचारियों से विभिन्न प्रश्न के पूछे गए तो पता चला कि उन्होंने चार अलग-अलग शिष्टाचारों पर काम किया था −

  • अथॉरिटी का सम्मान
  • व्यक्तिगत बनाम सामूहिक पहचान
  • जोखिम लेने की प्राथमिकता
  • पुरूषत्व/स्त्रीत्व की भावना

अथॉरिटी का सम्मान

मलेशिया और कोरिया जैसे देश जहाँ सीनियर्स का सम्मान करने की सख्त हिदायत होती है ऐसी संस्कृतियों के कर्मचारियों में अपने अथॉरिटी के लिए सम्मान उनकी प्रकृति में होता है। अथॉरिटी के लिए सम्मान न केवल पद बल्कि उम्र में भी परिलक्षित होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि किसी उच्च अथॉरिटी या वृद्ध व्यक्ति को अपने जूनियर्स के साथ बेरुखी से व्यवहार करना पड़ेगा। यहां दोनों एक-दूसरे को सम्मान देते हैं।

इसके ठीक विपरीत, डेनमार्क जैसी संस्कृतियों में अथॉरिटी के सम्मान के लिए इतना सख्त रुख अख्तियार नहीं किया जाता है। वरिष्ठता के लिए डैनिशों का कोई बहुत सख्त रवैया नहीं हाेता और संगठनात्मक(ऑर्गनाइज़ेशनल) रैंक के प्रति अडिग भाव रखने वालों के साथ वे तालमेल बनाने में कम्फर्टेबल(सहज) महसूस नहीं करते। वे उस ऑर्गनाइज़ेशनल स्टाइल (संगठनात्मक शैली) में ज्यादा कम्फर्टेबल फील(महसूस) करते हैं जहाँ डिसिज़न मेकिंग(निर्णय लेने) में उन्हें अपना योगदान देने का मौका मिलता है।

व्यक्तिगत बनाम सामूहिक पहचान

व्यक्तिवादी संस्कृति(इन्डविजूअलिस्ट कल्चर) वैयक्तिक पहचान, दायित्व और कामयाबी के भाव को पाने और उत्पन्न करने को - समूह के सदस्यों में इन सभी का अनुभव करने की तुलना में अधिक प्राथमिकता देती है। यूके जैसे व्यक्तिवादी संस्कृति के लोग तनाव मुक्त होकर सोशल कनेक्शन्स बनाते हैं, अपने व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता को प्राथमिकता देते हैं तथा व्यक्तिगत उपलब्धि के लिये लक्ष्य तय करते हैं।

व्यक्तिगत बनाम सामूहिक पहचान

काउंटरप्वाइंट(विषमता) के रूप में, वेनेजुएला जैसे समूहवादी(कलेक्टिविस्ट) समाज ने व्यक्तिगत उपलब्धियों की तुलना में टीम की उपलब्धि को अधिक महत्व दिया। उनके लिए यदि कोई टीम जीतती है तो हर कोई जीत जाता है। एक व्यक्ति अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी अपनी टीम के हारने पर स्वयं को हारा हुआ महसूस करता है। समूहवादी कर्तव्यनिष्ठा को सबसे अधिक महत्त्व देते हैं और ये कुछ ग्रूप्स जैसे-अपने परिवार, दोस्त, या सहयोगियों के लक्ष्य प्राप्ति को खयाल में रखकर काम पर फोकस करते हैं। फ्रांस को उसका दोनों - व्यक्तिगत और सामाजिक अधिकारों को समान तरजीह और सम्मान देना उसे अनूठा और विशेष बनाता हैं।

रिस्क लेने की प्राथमिकता

सिंगापुर की तरह कुछ ऐसे समाज हैं जहां लोग जानते हैं कि कैसे अनिश्चितता और अस्पष्टता से निपटना है, इसलिए वे जोखिम(रिस्क) लेते हैं और नए विचारों के प्रति अधिक ग्रहणशील(रीसेप्टिव) रहते हैं। यह प्रवृत्ति यूनानी लोगों में बमुश्किल पायी जाती है जो अनिश्चित पैरामीटर वाले किसी भी प्रोजेक्ट से बचते हैं।

यूनानी विश्वसनीय और संरचित योजनाएं चाहते हैं और यह उनके स्पष्टतः रचित सामाजिक शिष्टाचार और कानूनों में परिलक्षित होता है। इस संस्कृति के लोग अक्सर अपनी जॉब बदलते नहीं हैं, साथ ही ये नये रोल स्वीकारने, जॉब प्रोफाइल में बदलाव या नई जिम्मेदारी के प्रति उत्साहित नहीं दिखते हैं।

स्त्रीत्व/पुरुषत्व भाव

जापान में एक मजबूत मर्दाना(मैस्कुलिन) संस्कृति है जहां उपलब्धि, प्रतिस्पर्धा, भौतिक अधिग्रहण जैसी भावनाएँ  मर्दाना प्रभुत्व और सफलता को परिभाषित करती हैं। इसके विपरीत, फेमनिन संस्कृतियाँ व्यक्तिगत रिश्तों और जीवन की गुणवत्ता को मूल्य देने में प्रवृत्त हैं।

फुरसत के कुछ पलों और गुणवत्ता वाली शिक्षा पाते हुए स्वीडन जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों का स्वस्थ जीवन जीने पर खासा ध्यान होता है। ऐसी संस्कृतियों के लोग सतही नहीं, बल्कि जीवन के सभी स्तरों पर कल्याण के प्रति अधिक रुचि रखते हैं।

स्त्रीत्व/पुरुषत्व भाव

इन प्रतिक्रियाओं पर आधारित आईबीएम ने विभिन्न संस्कृतियों के लिए चार अलग-अलग 'वर्क एटिकेट मॉडल' तैयार किए। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाले अधिकारियों को सांस्कृतिक संवेदनशीलता का प्रशिक्षण दिया जाता था ताकि वे उन लोगों की स्थानीय संस्कृति को समझ सकें जिनके साथ वे काम करने वाले थे।

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