स्वच्छता व स्वास्थ्य(हाइजीन) से जुड़ी एटिकेट्स का विकास



विशेषज्ञों का कहना है कि संस्कृति के उदय के साथ-साथ सामाजिक शिष्टाचार का विकास भी तीन मुख्य श्रेणियों से गुजरा है। ये प्रत्येक श्रेणी वहाँ लोगों के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन निर्वाह करने के तौर-तरीकों पर आधारित विशिष्ट विषयों पर केंद्रित थीं।

ये तीन श्रेणियाँ हैं −

  • स्वच्छता
  • शालीनता और
  • सांस्कृतिक मानदंड

'हाइजीन' सफाई (sanitation) और स्वच्छता(cleanliness) के इर्द-गिर्द केंद्रित थी, जो लोगों की रोगों से रक्षा करती थी। 'कर्टसी' अस्तित्व और सामाजिक स्वीकार्यता पर आधारित थी, वहीं समान विचार वाले व्यक्तियों की टोली में सुरक्षित महसूस करने के लिए सांस्कृतिक मानदंड स्थापित किए गए थे।

इसे सहवर्तिता(कन्कामिटेन्स) कहा गया जिसका अर्थ कर्म के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आना है। चूंकि तीनों क्षेत्र एक व्यक्ति के जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं  इससे यह समझा जा सकता है कि एक व्यक्ति का जीवन एटिकेट से कितना घिरा हुआ है।

स्वच्छता से जुड़े एटिकेट्स का विकास दूसरों को ऐसे एटिकेट्स(शिष्टाचार) सिखाने के मकसद से हुआ जिससे वे बीमारी तथा उसके संक्रमण बच सकें। इन शिष्टाचार को बचपन में सिखाया जाता है क्योंकि बच्चों में बीमारियों के फैलने का खतरा अधिक होता है और यदि बच्चे कम उम्र में ही सफाई की आदतें सीख लें तो उनमें ये अच्छी आदतें बनी रहेंगी।

स्वच्छता से जुड़े एटिकेट्स

जब 12 साल की उम्र के बच्चों से यह पूछा गया कि वे सूप पीने से पहले  नैपकिन को क्यों रखते हैं, खाँसते समय रूमाल का इस्तेमाल क्यों करते हैं, जबकि अन्य छींकने और खांसते समय ऐसा नहीं करते तो वे सिर्फ इतना कहेंगे कि हमें यह माँ ने सिखाया है। जब उनसे यह पूछा जाये कि उनकी माताओं ने उन्हें यह क्यों सिखाया तो वे शायद कुछ नहीं बोल पायेंगे। जब ये बच्चे युवावस्था में पहुंचते हैं तब उन्हें इसके पीछे का कारण समझ में आता है कि उनके माता-पिता ने उन्हें कुछ विशिष्ट शिष्टाचार को पालन करना क्यों सिखाया था। हालांकि, उस समय तक शिष्टाचार उन्हें सुरक्षित रख सकता है।

इस तरह के शिष्टाचार की सफलता के लिए माता-पिता द्वारा बताये जानेवाले अनुशासन और अनुकूल माहौल अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मकसद यह होता है कि जब तक बालक वयस्क हों तब तक निरंतर अभ्यास से ये शिष्टाचार उनके स्वभाव के हिस्सा बन जायें।

अलग-अलग परिवार के बच्चों में अलग-अलग एटिकेट्स देखने को मिलती हैं जैसे डाइनिंग टेबल पर ज्यादा शोर नहीं करना, खाना खाते समय बात नहीं करना, या कभी किसी से अपना रूमाल नहीं शेयर करना, वहीं स्कूलों में हाइजीन से संबंधित एटिकेट्स का एक जैसे दिशा-निर्देशों का एक सेट होता है।

यहाँ हाइजीन से संबंधित कुछ बुनियादी एटिकेट्स की सूची दी गई है −

  • श्वसन स्राव (नाक से आनेवाले पानी) को पोंछने के लिए टिशू पेपर का इस्तेमाल करना।
  • उचित स्थान पर टिशू पेपर फेंकना।
  • खाँसते व छींकते वक्त मुँह और नाक को ढकना।
  • श्वसन स्राव के साथ आकस्मिक संपर्क के बाद हाथों को कीटाणुरहित करना।
  • खाँसते व छींकते वक्त दूसरों से कम से कम 3 फीट की दूरी बनाए रखना।
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